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Thursday, November 13, 2014
Kuch yeha ki kuch waha ki
बादलों से आगे और क्षितिज से दूर
कहीं चुप चाप सी दिखती है मंजिल
सामने है समंदर और कश्ती है दूर
लहरों कि गुज़ारिश है संग खेलना है जरुर
समय है कम और है थोडा सा डर
क्यों हो तुम ख्यालों में ये पूछना है खुद से
क्यों सोच में हो बसे ये जानना है
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